भयभीत पुत्र के भविष्य की
कल्पना से ,
ज्योतिष ध्वनि - दस्युसम्राट
या विश्वविजेता
का पदार्पण है, देवी, इस कुटीर
में,असमंजित रहती-
संभावनाओं के विपरीत छोर पर
टकती तुम.
नींव के पत्थरों की तरह,हर
रात्रि जोड़ती थी -
कथाओं की श्रंखला से शिक्षा का
अभिदान.
समय की धार में,हर क्षण,मेरी
जिज्ञासाओं का -
किस-किस विधा से,तुम, करती
समाधान.
प्रश्नों से तुम्हारी दुविधा
की पीड़ा से विज्ञ,
अनभिज्ञ बन,प्रश्न कर,करता
तुम्हें परेशान.
मैं अपने संपूर्ण ज्ञान का कर
चुकी दान -
पुत्र अब तुम मेरे प्रश्नों का
करेगा समाधान.
उस दिवस से,भाव विभोर,आह्वलादित
मैं,
गर्वभाव से,कर्तव्य की तरह,
अध्ययन करता -
रहता कहकर लीन हूँ मैं, कठिन
गृहकार्य में,
रात्रि के तीसरे पहर तक,देखने
हेतु,तुम्हारी मुस्कान.
एवम् योग्य शिष्य की
तरह,प्रश्नोत्तर की कड़ी,
की असंख्य श्रृखंला से,बनी
रही,गुरू प्रेरणा तुम.
शनैः शनैः, यदाकदा, जब अन्यान्य
कारणों से,
समस्याओं की चुनौती नहीं दे
पाती थी तुम -
ढूँढता विधा ताकि,खींच सकूँ मैं
तेरा ध्यान.
हठ कर,हर विधा से,व्याकुल,चाहता
फिर से दंड,
और दंड देकर भी,पश्चाताप के
तेरे अश्रु -
देखकर मेरा मन पाता, तुम्हारी
करुणा का आश्वासन.