अभिमन्यु की गाथा है,आधा हीं आता है.
गर्भ से सीखा नहीं,छाती पे झेला है.
युद्ध की तैयारी है, दुश्मन पर भारी है.
चक्रव्यूह वेदन कर पार तो पाऊंगा.
वापस लौटने की नहीं कोई अभिलाषा है.
खून के कतरे पे कई नाम होगा.
अपनों की लाशों भी होगी महाभारत में.
समय के टाइमलाइन पर जिंदगी एक घटना है.
परिवर्तन तो होगा,क्योंकि ये परमाणु बम है.
हम हों ना हों,प्रगति आगे की परिकल्पना है.
- अंजन भूषण, अप्रैल ४,२०१२
२९२/सी, अशोक नगर, राँची
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